fiza Tanvi

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आगाज़ ए ज़िन्दगी

आरज़ुओ का दरख़्त..

 आरज़ू और खुवाहिश इंसान की आने वाली ज़िन्दगी को खूबसूरत बनती है.

और अल्लाह से उम्मीद का दामन कस कर पकडे रहती है..

हर इंसान की आरज़ूये होती है.
मेरी भी बहुत सारी आरज़ू थी..

के मेरा एक छोटा सा परिवार हो जिस में मेरे माँ बाप उन का ढेर सारा प्यार

उन की मोहब्बत और शफ़क़त से शादाब मेरा आंगन हमेशा खुशहाल रहे..

एक दिन  मन्नू का एग्जाम था.
वो मुझे अपने साथ कॉलेज लेकर गयी थी. उस को कॉलेज छोड़ कर मैं और भाई आसमा बाजी के घर चले गए क्यो कि एग्जाम 3 घंटे का था...

जब हम उन के घर गए तो वो बहुत खुश हुई थी. उनका परिवार मुझे बहुत अच्छा लगा..

खास तौर से उन की नन्द उस को देख कर मेरे दिल से अचानक एक दुआ निकली या अल्लाह काश मेरी भी छोटी नन्द हो मेरा भी हसता मुस्कुराता परिवार हो...

मुझे क्या पता था. मैं जिस जगह बैठ कर दुआ कर रही हुँ...

वही का रिज़्क़ अब ओ दाना मेरी क़िस्मत में अल्लाह ने मेरे पैदा होने से पहले ही लिख दिया...है 

और एक छोटी और प्यारी सी नन्द भी भी मुझे दे दी है...

मेरे परिवार में सब अच्छे अख़लाक़ के है.अब्बू से मेरी अभी तक एक ही बार बात हुई है...

उन की मोहब्बत और शफ़क़त और उन का मेरे सर पर रखा हाथ.
मुझे मेरे ताया अब्बा जी की याद दिलाता है.

मेरे अब्बा जी मेरे लिये मेरा पापा से बढ़ कर थे. मुझे उन की बहुत याद आती है...

अल्लाह उन्हें जन्नत में आला से आला मुक़ाम अता करे.

मैं बचपन से ही बहुत खुशनसीब हुँ.
लोगो के एक माँ बाप होते है.

मेरे दो दो माँ बाप थे. एक ने हाथो का छाला बना के रखा और एक ने आँखों का तारा..

मेरा बचपन शहजादियों की तरह गुज़रा है. जब मैं पैदा हुई थी..

सबसे पहले मेरी अम्मा ने मुझे सीने से लगाया था..

जब 9 महीने की हुई तो मेरे अब्बा जी ने पीलीभीत और बरेली की सैर करा दी थी. पुलिस वालो से अब्बा जी के बहुत अच्छे ताल्लुकात थे..

2 साल की हो गयी तो 
वो मुझे सुबह ले जाते शाम तक मैं पुलिस स्टेशन में खेलती कभी वो मुझसे खेलते मुझसे प्यार करते...

कभी कभी अम्मा बहुत गुस्सा करती थी. इतनी छोटी बच्ची को तुम पूरा दिन उस की माँ से दूर रखते है..


अम्मा अब्बा को बहुत डांटती थी.
लेकिन वो उन की बातो को नज़र अंदाज़ कर देते थे..

बरेली और पीलीभीत के बड़े बड़े पुलिस स्टेशन में अब्बा जी मुझे ले जाते थे.

और बड़े बड़े ऑफिसर्स मुझे अपने गोद में उठा लिया करते थे. मैं देखने में बहुत खूबसूरत थी.और मेरी तोतली बाते खूब गौर से सुनते..

अम्मी मामा के घर जाती तो कैंडेक्टर अपनी गोद में बिठा लिया करता था.

या पास बैठी सवारी मुझे गोद में उठा लेती थी...

मैं एक चीज पर हाथ रखती मेरे अब्बा जी डब्बे उठा लाते थे.

मेरी अम्मा मलाई में चीनी डाल कर मुझे खिलाती थी.

दूध में बिस्किट भिगो कर रोज़ शाम को मुझे खाने को देती थी.

और मेरी अम्मी भी जब कपडे लेने मेरे लिए बाज़ार जाती थी.तो सोचती थी कोई एक अलग पीस हो जो मैं अपनी बेटी को पहनाऊ...

मेरी अम्मा तीनो बच्चो से छुपा कर मुझे पैसे देती थी. आम का मौसम आता. तो 5 किलो मेरे लिए अलग सब से छुपा कर रख देती और आढ़ में बिठा कर मुझे खिलाती थी...

जब मेला आता तो हलवा पराठा घर के लिए अलग आता और मेरे लिए अलग छुपा कर रख देती थी. मेले के बाद तीन चार दिन तक रख कर खाती थी..

जब तक मैं कॉलेज से नहीं आ जाती थी. मेरे अब्बा जी गली में बैठे बसों को देखते रहते थे..

जब छोटी थी. तब स्कूल छोड़ कर आते लेकर जाते..

एक खूबसूरत से गुलशन का प्यारा सा फूल थी मैं जो अम्मा अब्बा की निगरानी मे रहता है...

आज गुलशन उजड गया.
लेकिन अल्लाह ने दोबारा उस फूल के आस पास मोहब्बत करने वाले ला खडे कर दिए है.

और इंशाअल्लाह मेरे ये अपने भी हमेशा मुझसे मोहब्बत करेंगे.....

वैसे हर इंसान को दुनिया छोड़ कर जाना है..

कभी कभी सोचती हुँ अल्लाह मेरे माँ बाप की इतनी ज़िन्दगी कर देता.

वो अपनी बेटी की शादी देख लेते..
जिस का अरमान हर माँ बाप को होता है. खैर अल्लाह की मर्ज़ी के आगे कुछ नहीं कर सकते....

बस  दुआ कर सकते सकते है. अल्लाह उन्हें जन्नत उल फिरदोस का हक़दार बना दे. आमीन.....

Writter... fiza tanvi ✍🏻

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